Sunday, July 4, 2010
Tuesday, June 29, 2010
Sunday, June 6, 2010
Thursday, June 3, 2010
टूटे दिल को जो छूले
वही मीत मेरा /
जो गम मेरे लेले
वही मीत मेरा//
जो आँखों को भाये
वही मीत मेरा /
जो दर्दों से आये
वही गीत मेरा//
मैं कैसे बता दूं
के तुम मेरे क्या हो/
जहां में हमारा
ये रिश्ता है कैसा//
तुम खुद अपने दिल से
अंदाजा लगा लो/
तुम अपनी जुबान से
मुझे भी बता दो//
कभी आके देखो
तन्हाई का आलम/
लगा लो मुझे अपने
दिल से लगा लो//
वही मीत मेरा /
जो गम मेरे लेले
वही मीत मेरा//
जो आँखों को भाये
वही मीत मेरा /
जो दर्दों से आये
वही गीत मेरा//
मैं कैसे बता दूं
के तुम मेरे क्या हो/
जहां में हमारा
ये रिश्ता है कैसा//
तुम खुद अपने दिल से
अंदाजा लगा लो/
तुम अपनी जुबान से
मुझे भी बता दो//
कभी आके देखो
तन्हाई का आलम/
लगा लो मुझे अपने
दिल से लगा लो//
Friday, May 21, 2010
Saturday, May 15, 2010
Wednesday, April 28, 2010
जीवन?
एक दर्द, एक चुभन
एक गम कुछ खो जाने का /
जीवन?
एक आस, एक किरण
एक धन कुछ मिल जाने का/
जीवन?
एक सफ़र, एक गमन
एक पथ चलते जाने का/
जीवन?
एक पहेली, अनजान
बिन सोचे जीते जाने का/
जीवन?
एक प्राण, भीष्म प्राण
हँसते-रोते पूरा करते जाने का/
जीवन?
एक संघर्ष, एक युद्ध
खड्ग बिन द्वन्द करते जाने का/
जीवन?
एक भटकन, एक तर्पण
एक भूल भटकते jane का /
जीवन?
एक कहानी, अनकही
बस सुनते जाने का /
जीवन?
एक विश्वास, एक प्यास
अपना और गैर चुनते जाने का/
एक दर्द, एक चुभन
एक गम कुछ खो जाने का /
जीवन?
एक आस, एक किरण
एक धन कुछ मिल जाने का/
जीवन?
एक सफ़र, एक गमन
एक पथ चलते जाने का/
जीवन?
एक पहेली, अनजान
बिन सोचे जीते जाने का/
जीवन?
एक प्राण, भीष्म प्राण
हँसते-रोते पूरा करते जाने का/
जीवन?
एक संघर्ष, एक युद्ध
खड्ग बिन द्वन्द करते जाने का/
जीवन?
एक भटकन, एक तर्पण
एक भूल भटकते jane का /
जीवन?
एक कहानी, अनकही
बस सुनते जाने का /
जीवन?
एक विश्वास, एक प्यास
अपना और गैर चुनते जाने का/
Tuesday, April 27, 2010
Friday, April 23, 2010
Monday, April 19, 2010
Friday, April 16, 2010
Friday, April 2, 2010

ये माना कि महफ़िल जवां है हसीं है
मुझे फिर तबाह कर मुझे फिर रुला जा
सितम करने वाले कहीं से तू आ जा
आखों में तेरी ही सूरत बसी है
तेरी ही तरह तेरा गम भी हंसी है
जिधर भी ये देखे जहाँ भी ये जाएँ
तुझे ढूंढती हैं ये पागल निगाहें
मैं जिन्दा हूँ लेकिन कहाँ जिंदगी है
मेरी जिंदगी तू कहाँ खो गई है
Saturday, March 27, 2010
Saturday, March 6, 2010
Friday, March 5, 2010
Thursday, March 4, 2010
Wednesday, March 3, 2010
Monday, January 11, 2010
पहाड़ियों पर अब नहीं गूंजते रेडियो के स्वर
एक जमाना था जब हमारी भोर सुबह सवेरे रेडियो पर बजती प्रारंभिक प्रसारण धुन को सुनकर होती थी इसके बाद रेडियो पर बजता वन्दे मातरम का स्वर कानों को एक अलग ही आनंद प्रदान करता था उसके बाद एक के बाद एक हरिओम सरीखे अन्य लोगों की मधुर वाणी में भजनों का सिलसिला फिर समाचार यह आकाशवाणी है अब आप राजेंद्र चुध से समाचार सुनिए या फिर इयं आकाशवाणी सम्प्रति वार्ताः श्रोयांताम प्रवाचकः बलदेव नन्द सागरः इसके अलावा बिनाका संगीत माला, सुर सरिता, पुराने तराने, छायागीत, त्रिवेणी, बुजुर्गों की चोपाल, महिलाओं का घर संसार, रेडियो नाट्य रूपांतरण, आपकी फरमाइश और न जाने क्या-क्या कभी लोगों की सम्पन्नता का प्रतीक माने जाने वाले रडियो की मधुर धुनें आधुनिक उपकरणों के सामने न जाने कहाँ गुम हो गई उस दोरमें रेडियो गिने चुने लोगों के पास ही हुवा करता था मुझे याद है की उस समय गाँव में केवल हमारे पास ही रडियो हुवा करता था और लोग शाम को हमारे घर में रेडियो सुनने आया करते थे दिन में उसमे कमेंट्री सुनने वाले बड़े भ्राताओं का कब्ज़ा रहता था और शाम को हम सब चाव से एक आवाज सुनते थे कि अब हम न्याय करेंगें न्याय करने वाले कोई मूर्खाधिराज हुवा करते थे कौन थे वो नहीं मालूम लेकिन वो दिन आज भी भूले नहीं भूलते आज मनोरंजन भले ही हो रहा हो किन्तु अब पहले सा स्वस्थ नहीं रहा अब पहले की तरह एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर रेडियो की स्वर लहरियां भले ही न सुने देती हों किन्तु आज भी रेडियो के दीवानों की कमी नहीं आजभी दूर कहीं गूंजती रेडियो की प्राम्भिक धुन हमें अपने बचपन की और ले जाती है जब परिवार के बुजुर्ग ही रेडियो ओन किया करते थे और हम ध्यान से कान लगाये रहते थे आज भी पहाड़ के कई घरों में रेडियो का सम्मान बरक़रार है हो भी क्यों न रेडियो से सस्ता व् स्वस्थ मनोरंजन का साधन उपलब्ध जो नहीं है आज भी गर्मियों में आँगन में चारपाई पर लेटकर गाने सुनने का आनंद ही कुछ और है आज लोग भले ही टीवी की चकाचोंध में खोये हों लेकिन आने वाले दिनों में लोग सूचना व् मनोरंजन के लिए फिर से रेडियो की और लोटेंगे आज भी जी चाहता है कि काश वो दिन फिर से लौट आते कभी-कभी मेरे दिल ख्याल आता है कि तेरे जैसा यार कहाँ कहाँ ऐसा याराना यद् करेगी दुनिया तेरा मेरा अफसाना............
करन उप्रेती
करन उप्रेती
Thursday, January 7, 2010
आसूं
आसूं क्यों छलके हैं आज,
क्यों टूटा है दिल का साज
कहाँ खो गए मीत वो सारे,
जो चलते थे मेरे साथ
क्यों कोई अब गीत न गाता ,
पास कोई क्यों मीत न आता
क्यों लब अपने सूखे हैं अब ,
क्यों हमको कोई समां न भाता
कहाँ खो गई बसंत बयार ,
तोता मैना का रूठा क्यों प्यार
दर्द के मारे क्यों फिरते सब ,
रूठा क्यों अपनों का दुलार
क्यों टूटा है दिल का साज
कहाँ खो गए मीत वो सारे,
जो चलते थे मेरे साथ
क्यों कोई अब गीत न गाता ,
पास कोई क्यों मीत न आता
क्यों लब अपने सूखे हैं अब ,
क्यों हमको कोई समां न भाता
कहाँ खो गई बसंत बयार ,
तोता मैना का रूठा क्यों प्यार
दर्द के मारे क्यों फिरते सब ,
रूठा क्यों अपनों का दुलार
दुनिया
दुनिया ये दिखती है जैसी ,
होती नहीं है अब जाना
चोट लगी जब दिल पे अपने ,
दर्द जहाँ का तब जाना
कौन कहाँ है साथी किसका ,
मतलब के हैं यार यहाँ
कोई किसी पर सब कुछ लुटा दे ,
ऐसा अब होता है कहाँ
तन्हाई जो बाटें किसी की ,
लोग जहाँ में कब मिलते हैं
एक दूजे से आगे बढ़ने को ,
बस धोखा देते रहते हैं
प्यार में मर मिटने की बातें ,
पुस्तक में ही मिलती है
भोर सुहानी पहले जैसी ,
ख्वाबों में ही दिखती है
दर्द बाँटना कोई न जाने ,
घाव बढ़ाना सब जाने हैं
मरहम अब न कोई लगाये ,
जख्म कुरेदा करते हैं
इन खुशियों में क्या है ऐसा ,
जो औरों को दे नहीं सकते
अपनों के तो सब होते हैं ,
क्यों गैरों के हो नहीं सकते ?
कौन बताये अब ये "करन" को ,
प्यार जहाँ का क्यों मुरझाया
हँसते गाते मासूम चेहरे पे ,
दर्द का साया क्यों है छाया
करन उप्रेती
होती नहीं है अब जाना
चोट लगी जब दिल पे अपने ,
दर्द जहाँ का तब जाना
कौन कहाँ है साथी किसका ,
मतलब के हैं यार यहाँ
कोई किसी पर सब कुछ लुटा दे ,
ऐसा अब होता है कहाँ
तन्हाई जो बाटें किसी की ,
लोग जहाँ में कब मिलते हैं
एक दूजे से आगे बढ़ने को ,
बस धोखा देते रहते हैं
प्यार में मर मिटने की बातें ,
पुस्तक में ही मिलती है
भोर सुहानी पहले जैसी ,
ख्वाबों में ही दिखती है
दर्द बाँटना कोई न जाने ,
घाव बढ़ाना सब जाने हैं
मरहम अब न कोई लगाये ,
जख्म कुरेदा करते हैं
इन खुशियों में क्या है ऐसा ,
जो औरों को दे नहीं सकते
अपनों के तो सब होते हैं ,
क्यों गैरों के हो नहीं सकते ?
कौन बताये अब ये "करन" को ,
प्यार जहाँ का क्यों मुरझाया
हँसते गाते मासूम चेहरे पे ,
दर्द का साया क्यों है छाया
करन उप्रेती
Wednesday, January 6, 2010
नानू
मेरी दुनिया में आये थे ,
तेरा ऐसे फिर जाना क्यों ?
गले मुझको लगाकर के ,
तेरा मुझको ठुकराना क्यों ?
मुझे करके यहाँ तन्हा ,
छुपा है क्यों तू बता दे तू
कहाँ तेरी वो दुनिया है ,
मुझको उसका पता दे तू
बड़ी जालिम ये दुनिया है ,
ग़मों में मेरे हंसती है
तेरी बीती वो यादें सब ,
मुझे आकर क्यों डंसती है
ये दिल कैसा दीवाना है ,
तुम्ही को याद करता है
पता इसको न आओगे ,
मगर फरियाद करता है
तेरे बिन अब यहाँ जीना ,
मेरा मुश्किल हुआ जाता
बसा है तू जहाँ जाकर ,
मुझे भी तो बुला ले तू
दिखाने मोह कुछ दिन का ,
मेरी दुनिया में क्यों आया
खता की थी कहाँ मैंने ,
मुझे ऐसे क्यों तड़पाया
& करन उप्रेती &
तेरा ऐसे फिर जाना क्यों ?
गले मुझको लगाकर के ,
तेरा मुझको ठुकराना क्यों ?
मुझे करके यहाँ तन्हा ,
छुपा है क्यों तू बता दे तू
कहाँ तेरी वो दुनिया है ,
मुझको उसका पता दे तू
बड़ी जालिम ये दुनिया है ,
ग़मों में मेरे हंसती है
तेरी बीती वो यादें सब ,
मुझे आकर क्यों डंसती है
ये दिल कैसा दीवाना है ,
तुम्ही को याद करता है
पता इसको न आओगे ,
मगर फरियाद करता है
तेरे बिन अब यहाँ जीना ,
मेरा मुश्किल हुआ जाता
बसा है तू जहाँ जाकर ,
मुझे भी तो बुला ले तू
दिखाने मोह कुछ दिन का ,
मेरी दुनिया में क्यों आया
खता की थी कहाँ मैंने ,
मुझे ऐसे क्यों तड़पाया
& करन उप्रेती &
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