तुम कहती कि पी पी कर मैं
मधुशाला ही में मिट जाऊंगा
तुम क्या जानो मिटने पर भी
प्रेमी मय का कहलाऊंगा
मयखाने के हर कोने में
तब चर्चे मेरे गूजेंगे
मय के प्रेमी नाम मेरा ले
अपना प्याला चूमेंगे
फिर सारे मय प्रेमी मिलकर
मन्दिर एक बनायेंगे
मूर्ति न होगी कोई उसमे
बोतल को वहां सजायेंगे
मेरी पुस्तक मधु स्मृति के कुछ अंश
करन उप्रेती
Tuesday, November 24, 2009
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