Tuesday, December 15, 2009

छुपा है क्यों बता दे तू

मेरी दुनिया में जो आया था
तेरा ऐसे ये जाना क्यों ?
मुझे करके यहाँ तन्हा
बता दे तू छुपा है क्यों ?
कहाँ तेरी वो दुनिया है
मुझे भी तो बुला ले तू
बड़ी जालिम ये दुनिया है
ग़मों में मेरे हंसती है
समझ पाया न मैं अब तक
इनके तरकस की चालों को
भुला अब तक न पाया मैं
तेरे बीते ख्यालों को
जहाँ तुझको लगा अपना
वहां मुझको बुला तू
रात के २ बजे हैं और मुझे नींद नहीं आ रही करीब ९.३० से सोने की कोशिश कर रहा हूँ किंतु अचानक मेरे बेटे नानू के ख्यालों ने मेरी आखों से नींद उड़ा दी

Sunday, December 6, 2009

जिन्हें हम भूलना चाहें

वो अक्सर याद आते हैं

बुरा हो इस मुहब्बत का

वो क्यूँ कर याद आते हैं ?

Tuesday, November 24, 2009

मधु स्मृति

तुम कहती कि पी पी कर मैं
मधुशाला ही में मिट जाऊंगा
तुम क्या जानो मिटने पर भी
प्रेमी मय का कहलाऊंगा
मयखाने के हर कोने में
तब चर्चे मेरे गूजेंगे
मय के प्रेमी नाम मेरा ले
अपना प्याला चूमेंगे
फिर सारे मय प्रेमी मिलकर
मन्दिर एक बनायेंगे
मूर्ति न होगी कोई उसमे
बोतल को वहां सजायेंगे
मेरी पुस्तक मधु स्मृति के कुछ अंश
करन उप्रेती

Monday, September 14, 2009

भ्रस्ताचार

देश मे भ्रस्टाचार के खिलाफ उठ रही आवाजें जहां एक शुभ संकेत हैं वहीँ देश के उच्च पदों में आसीन लोगों की आवाज इस बात की ओर इशारा करता है कि अब पानी सर के उपर पहुँच चुका है अब आम आदमी को भी इस जंग मे शामिल होना पड़ेगा ओर इस नासूर को दूर करने के लिए भ्रस्टाचार में लिप्त लोगों के लिए फांसी के साथ ही सामाजिक बहिस्कार जैसी सजाएँ भी अमल में लानी होगी आम आदमी को इस जंग के लिए आवाज उठानी होगी भ्रस्टाचार पर रोक को देश के प्रधानमंत्रीमनमोहन सिंह की चिन्ता, प्रधान न्यायाधीश के जी बालाक्रिस्नन के सुझाव कबीले तारीफ़ हैं देश में यह समस्या वर्षों से चली आ रही है किंतु आज तक इसके खिलाफ आवाज उच्च स्तर से नहीं उठाई गई प्रधान न्यायाधीश की चिन्ता व् उनके सुझाव उनकी ईमानदारी के द्योतक हैं यदि मे चोर होऊंगा तो कभी नहीं चाहूँगा की चोरों के खिलाफ कोई कठोर कानून बने मैं हर हाल में उसका विरोध करूँगा इस लडाई में वही शामिल होगा जो ख़ुद भ्रस्टाचार से दूर हो भ्रस्टाचार की इस लडाई में मंत्रियों व् देश का अन्न खाने वाले जनप्रतिनिधियों की परीक्षा भी हो जायेगी की वो देश हित में काम करते ओर सोचते हैं वास्तव में अब समय आ गया है की भ्रस्टाचार में लिप्त अधिकारीयों की संपत्ति जब्त केर उनके खिलाफ कड़ी कारवाही की जाए मैंने ऐसे कर्मचारियों के बारे में सुना व् देखा है जिन्होंने अपनी छोटी सी नौकरी के दम पर करोड़ों की सम्पति खड़ी कर ली इनकी जाँच होनी चाहिए की जिनके पास नौकरी से पहले खाने को रोटी तक नही थी अचानक करोड़ों की सम्पति कहाँ से आ गई वर्तमान में उत्तराखंड में भ्रस्टाचार चरम पर हैं जनता के धन से अधिकारी कोठियां बना रहें हैं ओर जनता भूखी प्यासी तड़प रही है सम विकास के नाम पर आया करोड़ों रुपया अधिकारियो ने डकार लिया ओर विकास कागजों में पूरा कर दिया गया धरातल पर कहीं कुछ नही दीखता बावजूद इसके इन अधिकारीयों पर कोई करवाई न होना बताता है की धन मंत्री विधायको तक भी पहुँचता है इस जंग में न्यायपालिका के समर्थन के बाद अब जनता को खुलकर सामने आना होगा जागो इंडिया जागो वरना भूख प्यास व् असंतुलन के चलते अपने प्राण त्यागो प्रधान न्यायाधीश को कोटि कोटि सलाम ओर जंग में सामिल होने वाले सभी देश प्रेमी नागरिकों को भी प्रणाम जय हिंद

हरीश उप्रेती {करन}

चम्पावत

Sunday, September 6, 2009

नेताओ अब जागो तुम

मुंबई दहल उठी है कैसी
नेताओ अब जागो तुम
देकर चाँद बयानों को
न कर्तब्यों से भागो तुम
घर घर में अब आग लगी है
कईयों की अब मांग मिति है
चिराग घरों के मिट गए कितने
अनाथ हो गए बच्चे कितने
माल देश का खाने वालो
बस आश्वासन देने वालो
कब छलकेगा सब्र तुम्हारा
अब तो देश की आन बचा लो
ताज में जैसी आग लगी थी
जान पर लोगों की आन पड़ी थी
हर घर क्या यूँ जल्वाओगे
जागो वरना ख़ुद मिट जाओगे
गली गली जो अत्याचार हुए
घर घर जो नर संहार हुए
संसद पर जो ये वार हुआ
समझो शत्रु का उधार हुआ
बहुत कर चुका शत्रु ये सब
अब ठान लो तुम्हारी बारी है
कमर तलवार अब केस लो
अब किसकी इंतजारी है
हो बांकी गर लज्जा तुम में
तो प्रण कर लो न हारेंगे
शत्रु के गढ़ में घुस कर के
चुन चुन कर उनको मारेंगे
हो जरुरत गर मानव बम की
तो हमको पास बुला लेना
किसी भांति भी तुम हमको
शत्रु के घरःपहुँचा देना
फ़िर देखना तुम निज नैनों से
हम कैसी त्राहि मचाते हैं
शत्रु के गढ़ में घुस कर के
कैसा करतब दिखलाते हैं
वो भूल रहे ये धरती है
जहाँ अंगद हनुमान से वानर हैं
पल भर में उन्हें मिटा देंगे
वो बूँद हैं तो हम सागर हैं
करन उप्रेती
स्वरचित किताब अश्क में

Saturday, September 5, 2009

किससे कहूं |

किससे कहूं ? दो शब्दों का यह वाक्य समझने वाले के लिए काफी है क्योंकि दो शब्दों का यह वाक्य अधूरा जरूर लगता है किंतु यह शब्द बिना कुछ कहे बहुत कुछ कहने में सक्षम है दो शब्दों का छोटा सा यह वाक्य कहने वाले के हृदय के दर्द को बयाँ केर जाता है अब यह समझने वाले परनिर्भर करता है कि वह इसे किस रूप मई लेता है वास्तव में यही वह शब्द है जिसने मुझे अपने और गैर का फ़र्क समझाया वर्ना मै तो हर किसी पर विश्वास कर उसे अपना समझने की भूल कर बैठता और जब सामने वाले का असली चेहरा सामने आता तब तक देर हो चुकी होती और मेरे लिए अपने टूटे दिल को संभालना बहुत मुस्किल हो जाता है ऐसे में एक आवाज आती की दिल की बात किससे कहूं ? दिल की बात किसी से कहने में भेद खुलने का डर दर्द बताने में सामने वाले के हसने का डर खुशी का इजहार करने में उसके जलन का डर लेकिन ऐसा केसे हो सकता है की अपने दिल की बात कहे बिना कोई कैसे रह सकता है अपनी बात तो कहनी ही पड़ती है मन में रखने मेया दमन करने से बंधन पैदा होता है और बंधन सदेव जंजीरों को तोड़ना चाहता है परिंदों की तरह खुले आसमान में उड़ना चाहता है किसी भी दमन की स्थिति में हम ख़ुद को ही दबाते हैं जो पागलपन की और ले जाता है दिल में दर्द उठा या खुशी का आभास हुआ तो प्रश्न उठा की किससे कहूँ ? कई दोस्तों को दिल की बात बताई और उन्हें दिल से अपना माना किंतु अंत में हर किसी ने दर्द दिया और एक ही साथी बचा जिसने चुपचाप मेरे दिल की बात को सुना और उसे अपना बना लिया वह था मेरी डायरी का पन्ना मैंने अपनी हर खुशी और गम में उसे अपना साथी बना लिया
करन उप्रेती

Friday, September 4, 2009

जब हम निकले तेरे दर से

दिल मे याद तुम्हारी थी

बीते लम्हों की सब बातें

दिल में छबि तुम्हारी थी

Thursday, April 23, 2009

चुनाव का मैदान

चुनाव के मैदान में हुई
नेताओं की दौड़
कूदे सभी मैदान मे
अपना घर बार छोड़
अपना घर बार छोड़
सबने मन मे ठानी
किसी भातिं भी हो चाहे
कुर्सी है हथियानी
कुर्सी है हथियानी भाई
नेता है हमको बनना
यही एक कुंजी है जो
बनाये सेठ धन्ना
बनाये सेठ धन्ना
नौकर बंगला गाड़ी दिलवाए
बिन खर्चे ही एक अधेला
देश विदेश की सैर कराये

Saturday, April 11, 2009

सूनी पड़ी क्यों बस्तियां

उजड़ रहे क्यों गाँव हैं?

शांतवास त्याग क्यों

शहर की ओर पांव है

हर दिशा से उठ रही

क्यों आज ये आवाज है

रोजगार दो हमें कोई रोजगार दो

भूख प्यास से हमें कोई उबार दो

Sunday, March 29, 2009

Thursday, March 26, 2009

दोस्त पुराना याद आया

पैसे चार कमाने निकले ,
तब हमको घर याद आया
बूढी माँ की सुखी खांसी ,
जर्जर हाथों का दुलार आया ,
हर पल रहता साथ जो मेरे ,
दोस्त पुराना याद आया
पैसे चार कमाने निकले ....................
गाँव की वो पगडण्डी टेडी ,
पीपल की छाँव याद आई
बात बात पर भिड़ना यारों से ,
चौपाल गाँव की याद आई
जंगल की वो घनी झारियां,
बहती नदियाँ याद आई
पैसे चार कमाने निकले .........................................
जीवन ख़त्म हुआ जब अपना ,
जीने का तब ढंग आया
पहुंचे मौत की खाई मैं जब ,
तब सोचा की क्या पाया
गैरों ने जब ठुकराया हमको ,
अपनों का प्यार याद आया
पैसे चार कमाने निकले ................................................

Saturday, March 21, 2009

शब्दों की महक !

प्यार करिश्मा कैसा यारो ,

हँसना हमें सिखाया है

प्यार हुआ है जब से हमको ,

जीने का ढंग आया है

प्यार नही था जब तक हमको ,

हम तो रूखे रूखे थे

सावन भी आता था लेकिन ,

दिल के तरु सब सूखे थे

दुनिया लगती है अब प्यारी ,

प्यार को जब से पाया है

हर लम्हा उनकी यादों का ,

तोहफा लेकर आया है

कागज़ पर शब्दों की महक ने ,

ऐसा जाल बिछाया है

कि आज मेरा महबूब भी चलकर ,

मेरे दर पर आया है

चाल शराबी होंठ गुलाबी ,

नैनों मैं मदिरा लाया

बातें उसकी रस कि प्याली ,

साथ बहारे वो लाया

जीवन ये खुशियों का सागर ,

अब तो हमको लगता है

तनहा रहकर अब हर लम्हा ,

हमको डंसता रहता है

Friday, January 9, 2009

dil toota hai jab bhi mera
aah uthi hai is dil mai
aahon se upje hain sabd
sabd bane kavita khilke.