Sunday, September 6, 2009

नेताओ अब जागो तुम

मुंबई दहल उठी है कैसी
नेताओ अब जागो तुम
देकर चाँद बयानों को
न कर्तब्यों से भागो तुम
घर घर में अब आग लगी है
कईयों की अब मांग मिति है
चिराग घरों के मिट गए कितने
अनाथ हो गए बच्चे कितने
माल देश का खाने वालो
बस आश्वासन देने वालो
कब छलकेगा सब्र तुम्हारा
अब तो देश की आन बचा लो
ताज में जैसी आग लगी थी
जान पर लोगों की आन पड़ी थी
हर घर क्या यूँ जल्वाओगे
जागो वरना ख़ुद मिट जाओगे
गली गली जो अत्याचार हुए
घर घर जो नर संहार हुए
संसद पर जो ये वार हुआ
समझो शत्रु का उधार हुआ
बहुत कर चुका शत्रु ये सब
अब ठान लो तुम्हारी बारी है
कमर तलवार अब केस लो
अब किसकी इंतजारी है
हो बांकी गर लज्जा तुम में
तो प्रण कर लो न हारेंगे
शत्रु के गढ़ में घुस कर के
चुन चुन कर उनको मारेंगे
हो जरुरत गर मानव बम की
तो हमको पास बुला लेना
किसी भांति भी तुम हमको
शत्रु के घरःपहुँचा देना
फ़िर देखना तुम निज नैनों से
हम कैसी त्राहि मचाते हैं
शत्रु के गढ़ में घुस कर के
कैसा करतब दिखलाते हैं
वो भूल रहे ये धरती है
जहाँ अंगद हनुमान से वानर हैं
पल भर में उन्हें मिटा देंगे
वो बूँद हैं तो हम सागर हैं
करन उप्रेती
स्वरचित किताब अश्क में