Saturday, March 6, 2010


दिल से हरदम न जाने क्यूँ
अंगारे बरसते रहते हैं
मैं आह सी भरता रहता हूँ
आसूं ही टपकते रहते हैं
बेचैनी सी छा जाती है
पल पल जलते रहते हैं
दिल धडकता है फिर भी
मेरे प्राण निकलते रहते हैं

Friday, March 5, 2010


पंख होते तो
मस्ती

बालेश्वर मंदिर

जंगल में मंगल

हर फिक्र को धुंए में उडाता चला गया


वाणासुर किला चम्पावत

Thursday, March 4, 2010

जाने कहाँ गए वो दिन
कहते थे तेरी राह में
नजरों को हम झुकायेंगे
चाहे कहीं भी तुम रहो
तुमको न भूल पाएंगे
अपनी नजर में आजकल
दिन भी अँधेरी रात है
साया ही अपने साथ था
साया ही अपने साथ है

Wednesday, March 3, 2010


जब हमने तुम्हे याद किया है
दिल रोया है मेरा यार
क्यों फिर ये दीवार खड़ी है
जब करते हैं तुमको प्यार
हमने तुमको साथी माना
हमको मिली है सिर्फ जुदाई
महफ़िल में तेरी आकर भी
अपनी किस्मत में तन्हाई