Thursday, January 7, 2010

आसूं

आसूं क्यों छलके हैं आज,
क्यों टूटा है दिल का साज
कहाँ खो गए मीत वो सारे,
जो चलते थे मेरे साथ
क्यों कोई अब गीत न गाता ,
पास कोई क्यों मीत न आता
क्यों लब अपने सूखे हैं अब ,
क्यों हमको कोई समां न भाता
कहाँ खो गई बसंत बयार ,
तोता मैना का रूठा क्यों प्यार
दर्द के मारे क्यों फिरते सब ,
रूठा क्यों अपनों का दुलार

दुनिया

दुनिया ये दिखती है जैसी ,
होती नहीं है अब जाना
चोट लगी जब दिल पे अपने ,
दर्द जहाँ का तब जाना
कौन कहाँ है साथी किसका ,
मतलब के हैं यार यहाँ
कोई किसी पर सब कुछ लुटा दे ,
ऐसा अब होता है कहाँ
तन्हाई जो बाटें किसी की ,
लोग जहाँ में कब मिलते हैं
एक दूजे से आगे बढ़ने को ,
बस धोखा देते रहते हैं
प्यार में मर मिटने की बातें ,
पुस्तक में ही मिलती है
भोर सुहानी पहले जैसी ,
ख्वाबों में ही दिखती है
दर्द बाँटना कोई न जाने ,
घाव बढ़ाना सब जाने हैं
मरहम अब न कोई लगाये ,
जख्म कुरेदा करते हैं
इन खुशियों में क्या है ऐसा ,
जो औरों को दे नहीं सकते
अपनों के तो सब होते हैं ,
क्यों गैरों के हो नहीं सकते ?
कौन बताये अब ये "करन" को ,
प्यार जहाँ का क्यों मुरझाया
हँसते गाते मासूम चेहरे पे ,
दर्द का साया क्यों है छाया
करन उप्रेती

Wednesday, January 6, 2010

नानू

मेरी दुनिया में आये थे ,
तेरा ऐसे फिर जाना क्यों ?
गले मुझको लगाकर के ,
तेरा मुझको ठुकराना क्यों ?
मुझे करके यहाँ तन्हा ,
छुपा है क्यों तू बता दे तू
कहाँ तेरी वो दुनिया है ,
मुझको उसका पता दे तू
बड़ी जालिम ये दुनिया है ,
ग़मों में मेरे हंसती है
तेरी बीती वो यादें सब ,
मुझे आकर क्यों डंसती है
ये दिल कैसा दीवाना है ,
तुम्ही को याद करता है
पता इसको न आओगे ,
मगर फरियाद करता है
तेरे बिन अब यहाँ जीना ,
मेरा मुश्किल हुआ जाता
बसा है तू जहाँ जाकर ,
मुझे भी तो बुला ले तू
दिखाने मोह कुछ दिन का ,
मेरी दुनिया में क्यों आया
खता की थी कहाँ मैंने ,
मुझे ऐसे क्यों तड़पाया
& करन उप्रेती &