Saturday, September 5, 2009

किससे कहूं |

किससे कहूं ? दो शब्दों का यह वाक्य समझने वाले के लिए काफी है क्योंकि दो शब्दों का यह वाक्य अधूरा जरूर लगता है किंतु यह शब्द बिना कुछ कहे बहुत कुछ कहने में सक्षम है दो शब्दों का छोटा सा यह वाक्य कहने वाले के हृदय के दर्द को बयाँ केर जाता है अब यह समझने वाले परनिर्भर करता है कि वह इसे किस रूप मई लेता है वास्तव में यही वह शब्द है जिसने मुझे अपने और गैर का फ़र्क समझाया वर्ना मै तो हर किसी पर विश्वास कर उसे अपना समझने की भूल कर बैठता और जब सामने वाले का असली चेहरा सामने आता तब तक देर हो चुकी होती और मेरे लिए अपने टूटे दिल को संभालना बहुत मुस्किल हो जाता है ऐसे में एक आवाज आती की दिल की बात किससे कहूं ? दिल की बात किसी से कहने में भेद खुलने का डर दर्द बताने में सामने वाले के हसने का डर खुशी का इजहार करने में उसके जलन का डर लेकिन ऐसा केसे हो सकता है की अपने दिल की बात कहे बिना कोई कैसे रह सकता है अपनी बात तो कहनी ही पड़ती है मन में रखने मेया दमन करने से बंधन पैदा होता है और बंधन सदेव जंजीरों को तोड़ना चाहता है परिंदों की तरह खुले आसमान में उड़ना चाहता है किसी भी दमन की स्थिति में हम ख़ुद को ही दबाते हैं जो पागलपन की और ले जाता है दिल में दर्द उठा या खुशी का आभास हुआ तो प्रश्न उठा की किससे कहूँ ? कई दोस्तों को दिल की बात बताई और उन्हें दिल से अपना माना किंतु अंत में हर किसी ने दर्द दिया और एक ही साथी बचा जिसने चुपचाप मेरे दिल की बात को सुना और उसे अपना बना लिया वह था मेरी डायरी का पन्ना मैंने अपनी हर खुशी और गम में उसे अपना साथी बना लिया
करन उप्रेती

Friday, September 4, 2009

जब हम निकले तेरे दर से

दिल मे याद तुम्हारी थी

बीते लम्हों की सब बातें

दिल में छबि तुम्हारी थी