Sunday, July 4, 2010

bewafaa

Teri Yaad Yaad Yaad . Film : Bewafaa . Year : 2004

Main Duniya Bhula Dunga

Sanson Ki Zaroorat Hai-Aashiqi

Zindegi Ki Talash

Tera Gham Agar Na Hota

Tere Dard Se Dil

hum bhool gaye har baat

Tuesday, June 29, 2010

नानू आज तुम्हारे साथ मुझे एक साल हो जाता लेकिन तुम मुझे अकेला छोड़ कर चले गए क्यों ? भगवान् जाने लेकिन जो दर्द तुम देकर गए हो उसकी दवा कहीं नहीं मिलती, बियर बार में भी नहीं मैं क्या करूँ की तुम्हें भुला सकूँ ? लव यू जान

Monday, June 28, 2010


जब कोई बात बिगड़ जाये मुश्किल कोई पड़ जाये तुम देना साथ मेरा ओ हमनवा

Sunday, June 6, 2010

ख्वाहिश कहाँ हमारी,
किसी का दिल तोड़ जाने की/
अपनी तो आदत है,
यारों को प्यार में तदपने की//

Thursday, June 3, 2010

टूटे दिल को जो छूले
वही मीत मेरा /
जो गम मेरे लेले
वही मीत मेरा//
जो आँखों को भाये
वही मीत मेरा /
जो दर्दों से आये
वही गीत मेरा//
मैं कैसे बता दूं
के तुम मेरे क्या हो/
जहां में हमारा
ये रिश्ता है कैसा//
तुम खुद अपने दिल से
अंदाजा लगा लो/
तुम अपनी जुबान से
मुझे भी बता दो//
कभी आके देखो
तन्हाई का आलम/
लगा लो मुझे अपने
दिल से लगा लो//


Friday, May 21, 2010


मीटिंग-
चलो दोस्त छूने की खेलते हैं

चलो ठीक है पहले मैं छूता हूँ

मन्ने छूकर दिखा तो जाणू

Saturday, May 15, 2010


जुम्मन मियां वो महफ़िल ही क्या
जहां दिलवालों के साथ दिलजले न हों
तुम दिल से दिलवालों के लिए गाओ
दिलजलों का ख्याल हम रखेंगे

Wednesday, April 28, 2010

जीवन?
एक दर्द, एक चुभन
एक गम कुछ खो जाने का /
जीवन?
एक आस, एक किरण
एक धन कुछ मिल जाने का/
जीवन?
एक सफ़र, एक गमन
एक पथ चलते जाने का/
जीवन?
एक पहेली, अनजान
बिन सोचे जीते जाने का/
जीवन?
एक प्राण, भीष्म प्राण
हँसते-रोते पूरा करते जाने का/
जीवन?
एक संघर्ष, एक युद्ध
खड्ग बिन द्वन्द करते जाने का/
जीवन?
एक भटकन, एक तर्पण
एक भूल भटकते jane का /
जीवन?
एक कहानी, अनकही
बस सुनते जाने का /
जीवन?
एक विश्वास, एक प्यास
अपना और गैर चुनते जाने का/

Tuesday, April 27, 2010


प्यार खुदा है सब कहते हैं,
फिर क्यों प्यार पे पहरे हैं/
प्यार जहाँ में सब करते हैं,
फिर क्यों जख्म ये गहरे हैं//

रंग बिरंगी धरती सारी
रंगीला जग सारा /
सारे जग में सबसे प्यारा,
मेरा भारत न्यारा //

Friday, April 23, 2010

हमने चाहा जबसे तुमको ,
जीना ही दुस्वार हुवा \
दर्द मिले हैं इतने हमको,
अब सोचें क्यों प्यार हुवा \\
खता नहीं कुछ इसमें तुम्हारी,
दुश्मन जो संसार हुआ \
हमने चाहा प्यार बढ़ाना,
नफरत का व्यापार हुआ \\

Monday, April 19, 2010


खुशियों की निशानी फूल नहीं,
कांटे भी कभी खुशियाँ देते हैं
जब जख्म मिले अपनों से हमें,
हम काँटों संग भी जी लेते हैं

Saturday, April 17, 2010


प्यार के इस शहर मे नफरत के बीज किसने बोये,?
जो हंसाता था सभी को आज वह खुद ही क्यों रोये ?

Friday, April 16, 2010


कह रहा प्यार हमसे चलो हम चलें,
उस जहाँ में जहाँ कोई गम न मिले
हम मिलें दिल मिले और खुशियाँ मिले,
उस जहाँ में जहाँ अपनी चाहत फले

nasiruddin shah


ये क्या हो रहा है भइया

आमाँ सठियाय गए हो क्या
हम ही तो हैं

आदाब अर्ज़ है मियां कइसन हैं

Thursday, April 15, 2010


मुंबई का एक फोटो

एक फोटो फिल्म अभिनेता हेमंत पाण्डेय के साथ

पुरस्कृत करते मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक
मेरी पुस्तक हृदयांजलि का विमोचन करती महिला सशक्तिकरण मंत्री बीना महराना

Friday, April 2, 2010

तू जो नहीं है तो कुछ भी नहीं है
ये माना कि महफ़िल जवां है हसीं है
मुझे फिर तबाह कर मुझे फिर रुला जा
सितम करने वाले कहीं से तू आ जा
आखों में तेरी ही सूरत बसी है
तेरी ही तरह तेरा गम भी हंसी है
जिधर भी ये देखे जहाँ भी ये जाएँ
तुझे ढूंढती हैं ये पागल निगाहें
मैं जिन्दा हूँ लेकिन कहाँ जिंदगी है
मेरी जिंदगी तू कहाँ खो गई है

चाँद
के
पार
चलें

Saturday, March 27, 2010


दोस्ती किसी की रियासत नहीं होती
मौत किसी की अमानत नहीं होती
संभलकर रखना कदम हमारी सल्तनत मे
यहाँ दोस्ती तोड़ने वाले की जमानत नहीं होती
करन उप्रेती

Saturday, March 6, 2010


दिल से हरदम न जाने क्यूँ
अंगारे बरसते रहते हैं
मैं आह सी भरता रहता हूँ
आसूं ही टपकते रहते हैं
बेचैनी सी छा जाती है
पल पल जलते रहते हैं
दिल धडकता है फिर भी
मेरे प्राण निकलते रहते हैं

Friday, March 5, 2010


पंख होते तो
मस्ती

बालेश्वर मंदिर

जंगल में मंगल

हर फिक्र को धुंए में उडाता चला गया


वाणासुर किला चम्पावत

Thursday, March 4, 2010

जाने कहाँ गए वो दिन
कहते थे तेरी राह में
नजरों को हम झुकायेंगे
चाहे कहीं भी तुम रहो
तुमको न भूल पाएंगे
अपनी नजर में आजकल
दिन भी अँधेरी रात है
साया ही अपने साथ था
साया ही अपने साथ है

Wednesday, March 3, 2010


जब हमने तुम्हे याद किया है
दिल रोया है मेरा यार
क्यों फिर ये दीवार खड़ी है
जब करते हैं तुमको प्यार
हमने तुमको साथी माना
हमको मिली है सिर्फ जुदाई
महफ़िल में तेरी आकर भी
अपनी किस्मत में तन्हाई

Monday, January 11, 2010

पहाड़ियों पर अब नहीं गूंजते रेडियो के स्वर

एक जमाना था जब हमारी भोर सुबह सवेरे रेडियो पर बजती प्रारंभिक प्रसारण धुन को सुनकर होती थी इसके बाद रेडियो पर बजता वन्दे मातरम का स्वर कानों को एक अलग ही आनंद प्रदान करता था उसके बाद एक के बाद एक हरिओम सरीखे अन्य लोगों की मधुर वाणी में भजनों का सिलसिला फिर समाचार यह आकाशवाणी है अब आप राजेंद्र चुध से समाचार सुनिए या फिर इयं आकाशवाणी सम्प्रति वार्ताः श्रोयांताम प्रवाचकः बलदेव नन्द सागरः इसके अलावा बिनाका संगीत माला, सुर सरिता, पुराने तराने, छायागीत, त्रिवेणी, बुजुर्गों की चोपाल, महिलाओं का घर संसार, रेडियो नाट्य रूपांतरण, आपकी फरमाइश और न जाने क्या-क्या कभी लोगों की सम्पन्नता का प्रतीक माने जाने वाले रडियो की मधुर धुनें आधुनिक उपकरणों के सामने न जाने कहाँ गुम हो गई उस दोरमें रेडियो गिने चुने लोगों के पास ही हुवा करता था मुझे याद है की उस समय गाँव में केवल हमारे पास ही रडियो हुवा करता था और लोग शाम को हमारे घर में रेडियो सुनने आया करते थे दिन में उसमे कमेंट्री सुनने वाले बड़े भ्राताओं का कब्ज़ा रहता था और शाम को हम सब चाव से एक आवाज सुनते थे कि अब हम न्याय करेंगें न्याय करने वाले कोई मूर्खाधिराज हुवा करते थे कौन थे वो नहीं मालूम लेकिन वो दिन आज भी भूले नहीं भूलते आज मनोरंजन भले ही हो रहा हो किन्तु अब पहले सा स्वस्थ नहीं रहा अब पहले की तरह एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर रेडियो की स्वर लहरियां भले ही न सुने देती हों किन्तु आज भी रेडियो के दीवानों की कमी नहीं आजभी दूर कहीं गूंजती रेडियो की प्राम्भिक धुन हमें अपने बचपन की और ले जाती है जब परिवार के बुजुर्ग ही रेडियो ओन किया करते थे और हम ध्यान से कान लगाये रहते थे आज भी पहाड़ के कई घरों में रेडियो का सम्मान बरक़रार है हो भी क्यों न रेडियो से सस्ता व् स्वस्थ मनोरंजन का साधन उपलब्ध जो नहीं है आज भी गर्मियों में आँगन में चारपाई पर लेटकर गाने सुनने का आनंद ही कुछ और है आज लोग भले ही टीवी की चकाचोंध में खोये हों लेकिन आने वाले दिनों में लोग सूचना व् मनोरंजन के लिए फिर से रेडियो की और लोटेंगे आज भी जी चाहता है कि काश वो दिन फिर से लौट आते कभी-कभी मेरे दिल ख्याल आता है कि तेरे जैसा यार कहाँ कहाँ ऐसा याराना यद् करेगी दुनिया तेरा मेरा अफसाना............
करन उप्रेती

Thursday, January 7, 2010

आसूं

आसूं क्यों छलके हैं आज,
क्यों टूटा है दिल का साज
कहाँ खो गए मीत वो सारे,
जो चलते थे मेरे साथ
क्यों कोई अब गीत न गाता ,
पास कोई क्यों मीत न आता
क्यों लब अपने सूखे हैं अब ,
क्यों हमको कोई समां न भाता
कहाँ खो गई बसंत बयार ,
तोता मैना का रूठा क्यों प्यार
दर्द के मारे क्यों फिरते सब ,
रूठा क्यों अपनों का दुलार

दुनिया

दुनिया ये दिखती है जैसी ,
होती नहीं है अब जाना
चोट लगी जब दिल पे अपने ,
दर्द जहाँ का तब जाना
कौन कहाँ है साथी किसका ,
मतलब के हैं यार यहाँ
कोई किसी पर सब कुछ लुटा दे ,
ऐसा अब होता है कहाँ
तन्हाई जो बाटें किसी की ,
लोग जहाँ में कब मिलते हैं
एक दूजे से आगे बढ़ने को ,
बस धोखा देते रहते हैं
प्यार में मर मिटने की बातें ,
पुस्तक में ही मिलती है
भोर सुहानी पहले जैसी ,
ख्वाबों में ही दिखती है
दर्द बाँटना कोई न जाने ,
घाव बढ़ाना सब जाने हैं
मरहम अब न कोई लगाये ,
जख्म कुरेदा करते हैं
इन खुशियों में क्या है ऐसा ,
जो औरों को दे नहीं सकते
अपनों के तो सब होते हैं ,
क्यों गैरों के हो नहीं सकते ?
कौन बताये अब ये "करन" को ,
प्यार जहाँ का क्यों मुरझाया
हँसते गाते मासूम चेहरे पे ,
दर्द का साया क्यों है छाया
करन उप्रेती

Wednesday, January 6, 2010

नानू

मेरी दुनिया में आये थे ,
तेरा ऐसे फिर जाना क्यों ?
गले मुझको लगाकर के ,
तेरा मुझको ठुकराना क्यों ?
मुझे करके यहाँ तन्हा ,
छुपा है क्यों तू बता दे तू
कहाँ तेरी वो दुनिया है ,
मुझको उसका पता दे तू
बड़ी जालिम ये दुनिया है ,
ग़मों में मेरे हंसती है
तेरी बीती वो यादें सब ,
मुझे आकर क्यों डंसती है
ये दिल कैसा दीवाना है ,
तुम्ही को याद करता है
पता इसको न आओगे ,
मगर फरियाद करता है
तेरे बिन अब यहाँ जीना ,
मेरा मुश्किल हुआ जाता
बसा है तू जहाँ जाकर ,
मुझे भी तो बुला ले तू
दिखाने मोह कुछ दिन का ,
मेरी दुनिया में क्यों आया
खता की थी कहाँ मैंने ,
मुझे ऐसे क्यों तड़पाया
& करन उप्रेती &