Monday, January 11, 2010

पहाड़ियों पर अब नहीं गूंजते रेडियो के स्वर

एक जमाना था जब हमारी भोर सुबह सवेरे रेडियो पर बजती प्रारंभिक प्रसारण धुन को सुनकर होती थी इसके बाद रेडियो पर बजता वन्दे मातरम का स्वर कानों को एक अलग ही आनंद प्रदान करता था उसके बाद एक के बाद एक हरिओम सरीखे अन्य लोगों की मधुर वाणी में भजनों का सिलसिला फिर समाचार यह आकाशवाणी है अब आप राजेंद्र चुध से समाचार सुनिए या फिर इयं आकाशवाणी सम्प्रति वार्ताः श्रोयांताम प्रवाचकः बलदेव नन्द सागरः इसके अलावा बिनाका संगीत माला, सुर सरिता, पुराने तराने, छायागीत, त्रिवेणी, बुजुर्गों की चोपाल, महिलाओं का घर संसार, रेडियो नाट्य रूपांतरण, आपकी फरमाइश और न जाने क्या-क्या कभी लोगों की सम्पन्नता का प्रतीक माने जाने वाले रडियो की मधुर धुनें आधुनिक उपकरणों के सामने न जाने कहाँ गुम हो गई उस दोरमें रेडियो गिने चुने लोगों के पास ही हुवा करता था मुझे याद है की उस समय गाँव में केवल हमारे पास ही रडियो हुवा करता था और लोग शाम को हमारे घर में रेडियो सुनने आया करते थे दिन में उसमे कमेंट्री सुनने वाले बड़े भ्राताओं का कब्ज़ा रहता था और शाम को हम सब चाव से एक आवाज सुनते थे कि अब हम न्याय करेंगें न्याय करने वाले कोई मूर्खाधिराज हुवा करते थे कौन थे वो नहीं मालूम लेकिन वो दिन आज भी भूले नहीं भूलते आज मनोरंजन भले ही हो रहा हो किन्तु अब पहले सा स्वस्थ नहीं रहा अब पहले की तरह एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर रेडियो की स्वर लहरियां भले ही न सुने देती हों किन्तु आज भी रेडियो के दीवानों की कमी नहीं आजभी दूर कहीं गूंजती रेडियो की प्राम्भिक धुन हमें अपने बचपन की और ले जाती है जब परिवार के बुजुर्ग ही रेडियो ओन किया करते थे और हम ध्यान से कान लगाये रहते थे आज भी पहाड़ के कई घरों में रेडियो का सम्मान बरक़रार है हो भी क्यों न रेडियो से सस्ता व् स्वस्थ मनोरंजन का साधन उपलब्ध जो नहीं है आज भी गर्मियों में आँगन में चारपाई पर लेटकर गाने सुनने का आनंद ही कुछ और है आज लोग भले ही टीवी की चकाचोंध में खोये हों लेकिन आने वाले दिनों में लोग सूचना व् मनोरंजन के लिए फिर से रेडियो की और लोटेंगे आज भी जी चाहता है कि काश वो दिन फिर से लौट आते कभी-कभी मेरे दिल ख्याल आता है कि तेरे जैसा यार कहाँ कहाँ ऐसा याराना यद् करेगी दुनिया तेरा मेरा अफसाना............
करन उप्रेती