Friday, April 23, 2010

हमने चाहा जबसे तुमको ,
जीना ही दुस्वार हुवा \
दर्द मिले हैं इतने हमको,
अब सोचें क्यों प्यार हुवा \\
खता नहीं कुछ इसमें तुम्हारी,
दुश्मन जो संसार हुआ \
हमने चाहा प्यार बढ़ाना,
नफरत का व्यापार हुआ \\

No comments:

Post a Comment