Thursday, January 7, 2010

दुनिया

दुनिया ये दिखती है जैसी ,
होती नहीं है अब जाना
चोट लगी जब दिल पे अपने ,
दर्द जहाँ का तब जाना
कौन कहाँ है साथी किसका ,
मतलब के हैं यार यहाँ
कोई किसी पर सब कुछ लुटा दे ,
ऐसा अब होता है कहाँ
तन्हाई जो बाटें किसी की ,
लोग जहाँ में कब मिलते हैं
एक दूजे से आगे बढ़ने को ,
बस धोखा देते रहते हैं
प्यार में मर मिटने की बातें ,
पुस्तक में ही मिलती है
भोर सुहानी पहले जैसी ,
ख्वाबों में ही दिखती है
दर्द बाँटना कोई न जाने ,
घाव बढ़ाना सब जाने हैं
मरहम अब न कोई लगाये ,
जख्म कुरेदा करते हैं
इन खुशियों में क्या है ऐसा ,
जो औरों को दे नहीं सकते
अपनों के तो सब होते हैं ,
क्यों गैरों के हो नहीं सकते ?
कौन बताये अब ये "करन" को ,
प्यार जहाँ का क्यों मुरझाया
हँसते गाते मासूम चेहरे पे ,
दर्द का साया क्यों है छाया
करन उप्रेती

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